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Thursday, July 22, 2010

ye zameen agar sath rahe

ये ज़मीन साथ रहे, आसमान साथ रहे
मैं सच कहूँ और मेरी जबान साथ रहे

वो सख्स बढ़ता है जितना भी बुलंदी की तरफ
बताओ उसको की उतनी ढलान साथ रहे

सफ़र की आग सितारों मैं कहीं खो जाए
यूँ न हो तुझसे मिलूं और थकान साथ रहे

यूँ कबूतर अमन के उसने उदय हर सू
मगर हमेशा ही तीरों कमान साथ रहे

हयात बख्सी है मुझको तो ये हुनर भी दे
करूँ मैं आरती जिस पल अज़ान साथ रहे

वो सादगी वो हंसी, वो तेरे थिरकते लब
मैं घर से दूर रहूँ तेरा गुमान साथ रहे

नहीं है कौन जो बाज़ार की न ज़द मैं हो
करे जो प्यार भी 'अंजुम' दुकान साथ rahe

Kamai Umra Bhar ki

तेरा हर लफ्ज़ मेरी रूह को छूकर निकलता है.
तू पत्थर को भी छुए तो बाँसुरी का स्वर निकलता है.

कमाई उम्र भर की और क्या है, बस यही तो है.
मैं जिस दिल मैं भी देखूं वो ही मेरा घर निकलता है.

अलहदा है नहीं जाता मैं मंदिर मैं, न मस्जिद मैं.
मगर जिस दर पे झुक जाऊँ वो तेरा दर निकलता है.

ज़माना कोशिशें तो लाख करता है डराने की.
तुझे जब याद करता हूँ तो सारा डर निकलता है.

यहीं रहती हो तुम खुशबू हवाओं की बताती है.
यहाँ जिस जर्रे से मिलिए वही शायर निकलता है.

Monday, June 14, 2010

badi masumiyat se

बड़ी मासूमियत से सादगी से बात करता है
मेरा किरदार जब भी ज़िन्दगी से बात करता है

बताया हे किसी ने जल्द ही ये सुख जाएगी
तभी से मन मेरा घंटो नदी से बात करता है

कभी जो तीरगी हमारे मन को घेर लेती है
तो उठ के होसला तब रौशनी से बात करता है

नसीहत देर तक देती है उसको माँ ज़माने की
कोई बच्चा कभी जो अज्नभी से बात करता है

मैं कोशिश तो बहुत करता हूँ उसको जान लूँ लेकिन
वोह मिलने पर बड़ी कारीगरी से बात करता है

शरारत देखती है शक्ल बचपन की उदासी से
ये बचपन जब कभी संजीदगी से बात करता है.